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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

अध्याय ८  राजद्रोह के अपराधी

रैंड और आयर्स्ट की हत्या पूना में 22 जून, 1897 को की गई थी। तिलक 27 जुलाई को बम्बई में गिरफ्तार किए गए। उनके ऊपर लगाए गए राजद्रोह के अभियोग का आधार 'केसरी' में प्रकाशित शिवाजी सम्बन्धी एक लेख और कविता थी। ऊपर से रैंड की हत्या और तिलक की गिरफ्तारी में तो कोई सम्बन्ध नहीं था, लेकिन हत्या से उत्पन्न अफसरों में सनसनी और अंग्रेज समाचारपत्र द्वारा तिलक को बदनाम करने के प्रयत्न ही उनकी गिरफ्तारी के मूल कारण थे। इन समाचारपत्रों के अगुआ 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने तो तिलक के लेखों के उद्धरण भी तोड़-मरोड़कर प्रकाशित किए। पूना के नेताओं से तिलक की इस अपील कि 'प्लेग अधिकारियों की धांधली और अनाचारों के विरुद्ध केवल शोर मचाने से कुछ न होगा' का जिक्र करते हुए इस पत्र ने लिखा :

''रैंड और उनके सहयोगियों के विरुद्ध शोर मचाने की व्यर्थता के विषय में तिलक के विचारों को लेकर हमें कुछ नहीं कहना है, क्योंकि इस पर कोई निर्णय करने का अधिकार सूरी को ही है। लेकिन अवश्य ही कोई व्यक्ति, जिसके हाथ में पिस्तौल थी, तिलक की तरह केवल शोर मचाने में ही विश्वास नहीं रखता।''

जब इस प्रकार के झूठे आरोप का आन्दोलन पराकाष्ठा पर पहुंच गया तब तिलक ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को एक पत्र लिखा :

''पूना की दुखद घटनाओं से आपके न्याय विचार पर पर्दा पड़ गया है। लेकिन प्लेग के समय मैंने एक पत्रकार और भद्र व्यक्ति के रूप में जो कुछ किया, उसका आपने बिलकुल गलत वर्णन किया है। मुझ पर या मेरे पत्र पर लोगों में राजद्रोह पैदा करने का आरोप लगाना मेरे साथ घोर अन्याय है। आपकी तरह मैं जनता के उन दुखों के प्रति उदासीन नहीं रह सकता जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से सत्य जानता हूं। इस प्रकार के प्रश्नों पर उचित नीति अपनाना आप जैसे अंगरेज पत्रकारों के लिए सम्भव नहीं। लगता है, आपने भी 'लन्दन टाइम्स' के पदचिह्नों पर चलकर व्यक्तियों, संस्थाओं और सम्प्रदायों पर झूठे आरोप लगाने का बीड़ा उठा लिया है।

इस वाक्य में आयरलैडं के प्रख्यात देशभक्त पारनेल की ओर इशारा था जिन पर ब्रिटेन के समाचारपत्र और संसत्सदस्य 'फिनिक्स पार्क-हत्याओं' का अभियोग लगा रहे थे। तिलक ने इन पत्रों पर मुकदमा चलाने का निश्चय किया और इसीलिए 27 जुलाई को बम्बई गए। उसी रात वह भारतीय दण्ड-विधान की धारा 124-क के अधीन गिरफ्तार कर लिए गए। स्पष्ट था कि खुफिया पुलिस रैंड की हत्या में तिलक का कोई हाथ न पा सकी थी और इसलिए उन पर राजद्रोह का अभियोग लगाया गया।

1897 में राजनैतिक आन्दोलन शैशवावस्था में ही था और राजद्रोह के मुकदमों से लोग अभी तक परिचित न थे। अतः इसके नाम से ही बहुतों के हृदय में डर समा जाता था। तिलक के कई मित्रों और परिचितों ने भी उनकी गिरफ्तारी के बाद उनसे सम्बन्ध तोड़ लिया। उनकी आर्थिक अवस्था ठीक न होने के कारण मुकदमे के लिए धन एकत्र करना भी एक समस्या थी। इस समय जनता ने उनका साथ दिया और एक रक्षा-कोष खुल गया। बंगाल इसमें सबसे आगे रहा जहां 50,000 रुपये एकत्र किए गए और वहां से दो प्रमुख वकीलों को भी तिलक की पैरवी करने के लिए भेजा गया।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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